Challan
Image Courtesy : canstockphoto.com |
चालान में भी कुछ बात है
कभी दर्द तो कभी शान है
जेब से निष्प्राण है.
रुक ज़रा ओ श्वेताम्बर
रात की है तुझको खबर?
आज ह्रदय की टीस सारी
उन्माद में जो बह चली
हाँ उसी वक़्त दान दक्षिणा
बन गयी क्यूँ मनचली?
कौन सा काल था वो?
मेरी स्वप्न का बेताल था वो,
मांग कर कुछ तुच्छ मुद्रा
जेब उसकी गर्म हुई
आज इंसानियत की जात देखो
शर्म से बेशर्म हुई.
खैर! तुम भी ठीक हो ज़ालिम,
केंद्र बिंदु हम जो बने,
भागने की इस फिराक में
हम जो लिप्त थे,
कोटि कोटि नमन तुम्हें!
- हरीश बेंजवाल
* Please Note : the Hindi Grammatical error is because of the inability of Google Translator and related software/s to understand the input of Devnagari Script in its true original form! My apology.
Comments