अग्नि परीक्षा

अग्नि परीक्षा


 









मान भी लें

वक़्त तुम्हारे साथ नहीं
और पहले से हालात नहीं
पर जो तुम थमकर रुक गए
दफ़न 'उम्मीद' वहीं तुम जम गए।

हर बात पर जो तुम झुक रहे
और कहने से तुम रुक रहे
यह बात है तुम्हारी दीक्षा
चुनौतियों की है अग्निपरीक्षा
जो खिल गए तो बसंत हो
नीरस पतझड़ का अंत हो।

वहम दिल का जो फ़ितूर है
लक्ष्य बस वहीं तक का दूर है
सीढ़ियाँ ले संग जो अपना सगा है
उसी ने तो दिल को तेरे ठगा है।

दहकता तेरा रोष सही और
भभकती तपिश कहे यही
एकल तू अजेय फ़ौज है
असंख्य लहरों की मौज है
टीस भरे उन्माद का
और चोटिल तेरे हर ज़ज्बात का
होती रहेगी यूं अग्निपरीक्षा।।

- हरीश बेंजवाल

Comments

Popular posts from this blog

Delhi Gate

Band Baja aur Baraat!

Harmonium - Disharmony!