Rail Milaap

रेल मिलाप : सफ़र ज़िन्दगी का!
Image courtesy : indianmaharaja-train.com

कहते हैं इंसान की ज़िन्दगी उतार-चढ़ाव, सुखद-दुखद अनुभवों का एक ताना-बाना है. कोई धागा कभी खिसक जाए तो ताल-मेल ही बिगड़ जाए. खैर! ये कारवाँ तो चलता ही रहेगा. मैं चाहता था की आप से कुछ सुखद  पहलुओं पे थोड़ा चर्चा की जाए

वैसे ये जरूरी तो नहीं की हम लोग हर वक़्त गमहीन  रहें

क्यूँ भाई ठीक कहा?

तो मैं कहाँ था

हाँ! मैं बात कर रहा था सुखद अनुभवों की, ऐसे पल जब हमारे अन्दर का शिशु बड़ी-बड़ी नज़रों से दुनिया को ताकता है. ऐसे पलों में मुझे रेलगाड़ी का सफ़र सबसे बेहतरीन लगता है. मुझे सुकून की अनुभूति मिलती है रेल में. एक पटरी पर कोसों मील का सफ़र, रफ़्तार एक सी, निरंतर, दिन-रात. कभी खेत-खलिहान, तो कभी दूर एक छोटा सा घर. कभी किसी पुल पर धडधडाती हुई, तो कभी जंगलों में पसरा हुआ सन्नाटा  एक पल में लोगों की प्लेटफ़ॉर्म में चहल-पहल  तो दूसरी ओर शून्य की अनुभूति.


अरेभाई ट्रेन में सहयात्री भी  तो हैं उनका क्या? उनकी व्याख्या कौन करेगा?

जी बिलकुल.

सहयात्री कोई भी हो सकता है जैसे किसी भी उम्र, लिंग, धर्म का. वैसे होते हैं कुछ ख़ास से जैसे 'सजावटी', 'बनावटी', 'दिखावटी' और 'हटी'. हटी यात्री तकरीबन रेल से ही सफ़र करते हैं कुछ हट के कारण कुछ विविशता के. ये विनोदी स्वभाव के बन जाते हैं हालांकि उनका प्रयास हमें गुद-गुदाने का नहीं होता है वो तो अनायास ही उनकी भाव-भंगिमा से ऐसा प्रतीत हो जाता है, और हम मुस्कुराने पे मजबूर हो जाते हैं. ये 'हटी यात्री' रेल में बैठते बड़ी  शान से हैं, उनके चेहरे पे एक गंभीर मुद्रा होती है. सहयात्रियों से वो मेल-मिलाप खुद नहीं करते बल्कि इंतज़ार करते हैं की दूसरा ही बात छेढ़े. ये ज्यादातर रिटायर्ड सरकारी अधिकारी/कर्मचारी होते हैं. उनकी बातों में उनका रूतबा/औहदा दिखाने की एक खीज सी दिखती है. दबंगई अंदाज़ में वे अपने आप को श्रेष्ट और संस्था को निम्न बताने से भी नहीं चूकते. फिर बात, जो आनी ही होती है वो होती है घर-परिवार की और एक चमक के साथ उनकी आँखें बयान करने के मूड में जाती है की लड़का pilot है इंजिनियर है, डॉक्टर है और परदेस में है. 'परदेस' सुनकर श्रोताओं के मुख पर निराशा और वक्ता के मुख पर उल्लास की एक झलक दिख जाती है. गौर फ़रमाने की बात तो ये है की इंजिनियर, डॉक्टर से कम तो उनके बच्चे होते ही नहीं है. शायद ये रेल के लिए बने हुए जुमले हों?


'सजावटी 'और 'दिखावटी' यात्रियों का किसी से कोई लेन-देन  नहीं रहता  तभी तो वो सजावटी हैं. अपने से अतिरिक्त बोझ  ले जाना वो गर्व की बात समझते हैं. बाकी यात्री 'प्रत्यक्षदर्शी' के सामान लगते हैं. ज़रा सा गलियारे के तरफ रुख क्या किया की वो टकटकी नज़रों से आप को देखें. और इन सब बातों के बीच रेलवे कैटरिंग स्टाफ निरंतर निराश करने वाली वस्तुएं लाकर आपको, ज़िन्दगी के कडुवे सच से मुलाक़ात कराती है. स्वाद और गुणवक्ता का झूठा एहसास उनकी आवाज़ कराती है. कुछ तो बात है. "चाय-चाय " "कटलेट-वैज   बिरयानी" ना जाने क्या-क्या. ग्राहक ठगा सा महसूस करता है पर कभी शोर नहीं मचाता और चुप-चाप  खा-पी जाता है.


अब बात आती है नींद की. अनुभव अगर सुखद हों तो भला नींद क्यूँ ना आये? नींद भी आती है रेल में, और 'पालने'  के समान  जब रेल झूमती है तो नींद ही जाती है. सबसे ऊपर वाली सीट हमेशा तैयार रहती है सोने के लिए. वहां जाकर हम बेफिक्र हों जाते हैं और अगर अपना सामान भी साथ हों तो वाह! क्या कहने.


सुबह के नित्य-कर्मों से निवृत होकर बातों का दौर फिर शुरू हों जाता है. चूँकि रेल अपने गंतव्य से कुछ ही घंटे दूर होती है तो बातें भी कुछ भावनात्मक रूप लेने लगती है. हटी यात्री सौम्य हों जाते हैं. उनकी उत्सुकता अब दूसरों को जाने की हों जाती हैं हालांकि समय काफी कम शेष रहता है. और देखते ही देखते गंतव्य भी जाता है और सफ़र अपने अंतिम पड़ाव पे जाता  है. यहाँ पर बातों की लाइन कट जाती है, जैसे टेलेफोन में होता है. यात्री फिर से एक नयी दुविधा के शिकार हों  जाते हैं, की कौन, कहाँ उन्हें लेने आया होगा, या कहाँ कैसे पहुंचा जाए. ये सब बड़ी तेज़ी से होता है. और जल्द बाज़ी में अलविदा, अल्लाह हाफिज़ कहना भी नहीं हों पाता. पर अनुभव का एक प्रिंट हम अपने मस्तिष्क में जरूर ले जाते हैं.





- हरीश बेंजवाल

विशेष : कुछ त्रुटियाँ इस लेख में अवश्य मिलेंगी क्युंकी  ये लेख 'गूगल ट्रांसलेटर' (Google translator)  पे टाइप किया गया है
लेखक ने अपनी तरफ से पूर्ण कोशिश की लेख त्रुटी रहित हों. लेकिन technology के इस युग में Errors होना लाज़मी है

क्षमाप्रार्थी 

Comments

nidhi kukreti said…
जिन्दगी का सफ़र, हैं ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं

है ये कैसी डगर, चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं
Unknown said…
good nidhi...so u r fan of rajesh 'kaka's'fan??? hmm...

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