फ़ुहार 

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फ़ुहार 

है तो  ये बारिश की फ़ुहार
जो बरसी आज यूँ बरबस
आँखों की इस तपिश को
कौंध  से बेबस कर.

उड़ती हुई धूल के ये भंवर
थे जो कुछ आक्रोश  में
भीगती भरती हुई नालियों
संग, अब तो  हैसियत खामोश है.


कई रातों की करवटें
बदली हैं जो इस पल
शायद कई तो मैं भूल गया
भूलता हूँ क्यूँ मैं सरल?


बंधा हुआ आज सब ये तुम, समय
और पहलुओं की जो रात
थमी जरूर है, कुछ वक़्त तो  दो
फिर जमेगी ये बरसात.

मन तो है कुछ भीगने का
संकोच पर जो मन का है
बूँद गिरी हैं जो आँख पर,
बस उन्ही का तो भ्रम हैं .

- हरीश बेंजवाल

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